BA Semester-5 Paper-2 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2802
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए किसी एक का ध्वनि नियम को सोदाहरण व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

भाषा एक बहते हुए नदी प्रवाह के तुल्य है, जिसमें कहीं तीव्रगति है तो कहीं मंदगति है। कहीं रुकावट - सी है तो कहीं समानता है। वह प्रवाह कहीं पर स्वच्छ है तो कहीं उसमें गन्दे नाले मिल जाते हैं तो वह धूमिल या मलवाहक बन जाता है। उसके प्रवाह से कहीं से नाले या रजवाहें निकलते हैं जिससे उसका रूप क्षीण हो जाता है, तो कहीं पर अन्य छोटे-छोटे प्रवाह मिलने से वह स्थूलकाय हो जाती है। इसी प्रकार भाषा भी कई रूपों में है। कभी वह एक रूप रहकर कई शताब्दियों तक प्रवाहित होती रहती है। जैसे- संस्कृत भाषा अपने एक ही रूप में अनेकों शताब्दियों तक चलती रही। कहीं भाषा में राजनीतिक आदि कारणों से अन्य भाषा के शब्द मिल जाते हैं, जैसे भारत में मुस्लिम राज्य होने से अरबी-फारसी शब्द बहुत मिल गये थे तथा अंग्रेजी शासन के कारण अंग्रेजी शब्द मिल गये। अतः हिन्दी भाषा का मौलिक रूप ही अज्ञात हो गया। इसमें भाषा की परिवर्तनशीलता तब तक रहती है जब तक वह मृत नहीं हो जाती।

ध्वनि-परिवर्तन का अर्थ - भाषा का रूप बदलता है तो उसकी ध्वनि, रूप और अर्थ में परिवर्तन आता है। भाषा का मुख्य सम्बन्ध ध्वनि से है। भाषा का ध्वन्यात्मक विकास उसका ध्वनि-परिवर्तन है। ध्वनि- परिवर्तन व्यक्तिगत, भौगोलिक, राजनीतिक आदि से होता है क्योंकि एक ही शब्द, पद या वाक्य को जब विभिन्न व्यक्ति, विविध भाषा-भाषी, विविध प्रदेश के रहने वाले बोलेंगे तो स्वभावतः ध्वनि के उच्चारण में अवश्य अन्तर आ जायेगा। भाषा के विकास के साथ-साथ ध्वनि में भी नयापन आता है। उदाहरण के लिए संस्कृत का 'घोटक' शब्द विकसित होते-होते 'घोड़ा बन गया घोटक-घोड़क-घोड़क-घोड़अ - घोड़ा। यही ध्वनि में नयापन या विकास कहा जा सकता है। ध्वनि का विकास, ध्वनि का नयापन, ध्वनि की गतिशीलता आदि ध्वनि परिवर्तन हैं।

ध्वनि परिवर्तन के कारण

ध्वनि-परिवर्तन के अनेक कारण हैं। अध्ययन की दृष्टि से उन्हें दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-

(क) बाह्य करण - बाह्य कारण का अर्थ है कि जब बाहरी कारणों से ध्वनि-परिवर्तन होता है। बाह्य कारण भी अनेक प्रकार के हैं। उनमें प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

१. भौगोलिक कारण - भाषा की ध्वनियों के उच्चारण में भौगोलिक वातावरण का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। प्रायः यह देखा जाता है कि शीतल जलवायु वाले प्रदेशों में कुछ दन्त्य ध्वनियों का उच्चारण नहीं हो पाता। वे प्रायः त को ट्, थ को ठ, द को ड का उच्चारण करते हैं। अंग्रेज 'तुम कहाँ जाते हो। वाक्य को ठुम कया जाता है। 'जैसा उच्चारण करते हैं। भारत के पर्वतीय प्रदेश के रहने वाले 'स को श' बोलते हैं। जबकि हरियाणा, उत्तर प्रदेश के वासी 'श' को 'स' कहते हैं। यह उनके भौगोलिक वातावरण के कारण शरीर की बनावट है जिसका प्रभाव वाक् यन्त्र पर भी पड़ता। उष्ण प्रदेशीय प्रायः स्वर ध्वनियों का प्रयोग अधिक करते हैं। अतः उनकी ध्वनियाँ संगीतात्मक हैं। यहाँ के रहने वालों की स्वर-ध्वनि में प्रायः खिंचाव रहता है। भौगोलिक प्रभाव के कारण ही ज, ख, ग आदि ध्वनियाँ कहीं पर इसी प्रकार उच्चरित की जाती हैं तो कहीं पर वे ज, ख तथा ग हो जाती हैं। प्रायः देखा जाता है कि प्रत्येक देश की ध्वनि अलग-अलग होती है। एक अंग्रेज यदि बोलता है या एक हिन्दुस्तानी यदि अंग्रेजी बोलता है तो उसकी ध्वनि से ही ज्ञात हो जाता है कि कौन किस देश का रहने वाला है। ध्वनि का प्रभाव भौगोलिक परिस्थितियों के व्याकरण प्रत्ययः बदलता हुआ पाया जाता है।

२. ऐतिहासिक कारण - ध्वनियाँ ऐतिहासिक विकास के कारण भी बदल जाती हैं। प्राचीन काल में वैदिक ध्वनियाँ थी। धीरे-धीरे वैदिक ध्वनियाँ लौकिक संस्कृत में बदल गयीं। वहाँ उदात्त, अनुदात्त, स्वरित पर ध्यान नहीं दिया गया। संस्कृत ध्वनियाँ प्राकृत में बदल गयीं। वे धीरे-धीरे सरल होती गयीं।

उदाहरण के लिए - संस्कृत के कन्या, रात्रि, भिक्षु, आत्मा, घ्राण, हिरण्य शब्द क्रमशः पालि में कञ्जा, भिक्खु, अत्ता, घाण, हिरञ्ञ हो गये। प्राकृत में संधियाँ कम हो गईं। जैसे-

१. भवतु, नारचानसरं (संस्कृत),
२. भादु। ण ते अवसर (प्राकृत)।

भाषा के ऐतिहासिक कारण से ही संस्कृत, प्राकृत आदि की ध्वनियाँ जो योगात्मक थीं धीरे-धीरे अयोगात्मक हो गयी अर्थात् विभक्ति, प्रत्यय आदि हिन्दी जैसी आधुनिक भाषाओं में पृथक् हो गये। भारत में हिन्दी भाषा पर मुस्लिम शासन का प्रभाव पर्याप्त रूप से दिखाई देता है। अंग्रेजों का राज्य होने के कारण हिन्दी की ध्वनियों पर अंग्रेजी भाषा का पर्याप्त प्रभाव पड़ा। अंग्रेज दिल्ली के डलही मेरठ को मीटर, राम को रामा, मिश्र को मिश्रा, गुप्त को गुप्ता, भारत को इण्डिया कहते थे। उसी प्रकार के प्रभाव के कारण ये शब्द प्रचलित हो गये और ध्वनियों पर प्रभाव पड़ा।

आज के कम्प्यूटर के युग में लेखिका भी कुछ ध्वनियों के कारण प्रभावित हुये।

३. वैयक्तिक कारण - प्रत्येक व्यक्ति की अपनी-अपनी ध्वनिगत विशेषताएँ होती हैं। उसेक उच्चारण का ढंग अपना-अपना होता है। एक ही भाषा को बोलने वाले व्यक्ति उच्चारण के कारण अपनी- अपनी पहचान बनाए हुए हैं। कल्पना कीजिए कि राम, श्याम, मोहन राकेश आदि बीस मित्र हैं। यदि वे अंधेरे में बातचीत करते हैं तो वे भाषा के उच्चरित रूप की विभिन्नता से एक-दूसरे को पहचान लेते हैं कि कौन-सी बात कौन कह रहा है। यदि वे मित्र बिछुड़ जाते हैं और बहुत दिनों के बाद अचानक मिलते हैं तो वे शारीरिक रूप से चाहे शीघ्रता से पहचान न पाएँ, परन्तु ध्वनि (भाषाज) के रूप में पहचान लिये. जाते हैं।

इतना ही नहीं, एक प्रदेश के व्यक्ति की ध्वनियाँ (टोन) जैसी होती है, अन्य प्रदेश के व्यक्ति की टोन उससे अलग होती है, जैसे- 'चन्द्र' शब्द को पंजाबी प्रायः 'चन्दर' उच्चरित करेंगे तो बंगाली 'चन्दरा' ध्वनित करेंगे। प्रायः ध्वनि (टोन) के आधार पर प्रत्येक देश के ही नहीं, बल्कि प्रदेश के व्यक्ति की भी पहचान हो जाती है। उत्तर प्रदेश का रहने वाला स्टेशन को इस्टेशन कहेगा तो पंजाबी सटेशन कहेगा। वस्तुतः प्रत्येक व्यक्ति की अपनी-अपनी उच्चरित ध्वनि भिन्न-भिन्न होते हुई भी उस पर परिवेश का पर्याप्त प्रभाव रहता है।

(ख) आन्तरिक कारण

ध्वनि परिवर्तन के आन्तरिक कारण भी है। आन्तरिक कारण का अर्थ है जिन कारणों से मूल ध्वनि पर बाहरी प्रभाव न पड़कर वाग्यन्त्र सम्बन्धी प्रभाव पड़ता है। आन्तरिक कारण ध्वनि परिवर्तन के विषय में निम्नलिखित हैं-

१. उच्चारण में सुविधा या प्रयत्न - लाघव इसे कुछ विद्वान् मुख-सुख कहकर पुकारते हैं। प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक कार्य सुख, सुविधा या सरलता से कर लेना चाहता है जिसके लिए वह कम से कम प्रयास में अधिक से अधिक कार्य करना चाहता है। भाषा के विषय में भी उसने इसी प्रवृत्ति को अपनाया हैं। भाषा उसके लिए, साध्य नहीं है, बल्कि विचारों के आदान-प्रदान का साधन है। वह सरलता से अर्थात् कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक भावों को व्यक्त करने का इच्छुक रहता है। अंग्रेजी भाषा में Knowledge (नालेज) Psychology (साइकोलॉजी), Cheque (चैक) Restaurant (रेस्टोरां) आदि शब्द इसी कारण संक्षेप में उच्चरित हैं। संस्कृत भाषा के कठिन शब्दों का प्राकृत पालि आदि में सरलता से उच्चारण किया जाता है। जैसे-

संस्कृत पालि संस्कृत प्राकृत
चन्द्रमा चन्दिमा गमिष्यामि गमिस्सं
औत्सुक्यम्   उत्सुक्क साम्प्रतम् संपदं
प्रथमा पठया भवान् भवं
ज्ञान ञाण विडम्बयति विडम्बेदि
रात्रि रत्ति - -

इतना ही नहीं, हिन्दी में उपाध्याय को झा, चट्टोपाध्याय को चौबेजी कहने लगे हैं, यह उच्चारण की सुविधा प्रत्येक भाषा की अपनी-अपनी है। इसके लिए कोई भी नियम नहीं है, किस ध्वनि को कहाँ से और किस प्रकार हटाया जाए? इसका भी कोई प्रावधान नहीं है। जो शब्द जिस भाषा में जिस रूप में वचलित होने लगे वे ही ठीक हैं। इस प्रयत्न लाघव की प्रवृत्ति को उसी रूप में सभी ने अपना रखा है।

(२) भावावेश के कारण - भावुकता के कारण ध्वनियों में परिवर्तन होता है। यह भावुकता कभी तो स्नेह या प्रेम की अधिकता हो सकती है या क्रोध या द्वेष सूचक हो सकती है। वहाँ पर भावना ही बलवती रहती है अतः शब्दों की ध्वनियाँ उचित में नहीं रहती हैं। प्यार या अत्यधिक स्नेह के कारण शिशु को लला, लाल 'वचवा, कहकर पुकारते हैं। प्राचीन काल में संस्कृत में भी 'तात' 'वत्स' 'प्रिय' आदि स्नेह सूचक शब्दों का प्रयोग होता था। किसी को अमांगलिक कहने के लिए धिक्कार के स्थान पर 'धिक्' 'छि: ' 'हन्त' आदि भावुकतापूर्ण शब्द प्रयोग किये जाते हैं।

(३) शीघ्र उच्चारण के कारण - कभी-कभी ऐसे अवसर भी आते हैं कि व्यक्ति शब्दों को जानते हुए भी शीघ्रता से जब उस ध्वनि का उच्चारण करता है तो वह बहुत संक्षिप्त उच्चारण कर जाता है। जैसे 'मास्टर जी' का 'मास्सजी', 'मम्मी' को 'मम', डैडी को डैड, साहब को 'साब' कहने लगता है। यद्यपि ये अशुद्ध हैं तथापि इनकी अशुद्धता इस कारण नहीं क्योंकि शीघ्रता से उच्चरित ध्वनियाँ हैं, अज्ञानता के कारण इन ध्वनियों का उच्चारण नहीं किया गया है। हिन्दी में 'तबही' को 'तभी कहा जाता है।

(४) अशिक्षा या अज्ञानता के कारण - अशिक्षा या अज्ञानता के कारण भी भाषा की ध्वनियों में परिवर्तन आता है। वस्तुतः इसी कारण मानक भाषाएँ या प्रचलित उच्च भाषाएँ लोक भाषा में बदल जाती हैं। प्राचीनकाल में वेदों को सभी जातियों को पढ़ने का अधिकार नहीं था, नारियाँ अशिक्षित थीं। जिन्हें पढ़ने का अधिकार नहीं था। वे सभी पढ़ने से वंचित रह जाते थे। यह प्राचीन प्रणाली का ही दोष नहीं। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में शिक्षा का प्रचार व प्रसार सदा सीमित दायरे तक रहा। अतः प्रत्येक काल में शिक्षित जनों की भाषा व अशिक्षितों की भाषा प्रयोग की जाती रही। अशिक्षितों की भाषा का अर्थ है अशिक्षित भाषा का अशुद्ध प्रयोग करते थे। कालिदास के युग में नारियों को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नहीं था, कश्यप ऋषि के आश्रम में शकुन्तला और उसकी दो सखियाँ अनुसूया और प्रियंवदा अशिक्षा के कारण अशुद्ध भाषा (प्राकृत) बोलती थीं। उदाहरणार्थ

प्रियंवदा - हला सउन्दले। तिट्ठ इधञ्जेव (तिष्ठ हरैव)
                (सखि शकुन्तला इधर ही ठहरो)

शकुन्तला -
किंति (किमति)
                   (किसलिए?)

यह भाषा का बिगड़ा हुआ रूप है। हिन्दी भाषा की हरियाणवी, उत्तर प्रदेशीय, राजस्थानी, बिहारी बोलियाँ उसकी अशिक्षित ध्वनियाँ हैं। जैसे- "क्या कर रहे हैं?" (हिन्दी)। के कर्रा स (हरियाणवी), क्या कर्रा (उत्तर प्रदेशीय) का करत वा (बिहारी)।

हरियाणवी, उत्तर प्रदेश व बिहारी एक ही वाक्य का उच्चारण अलग-अलग कर रहे हैं जो उनकी अशिक्षा ही कही जा सकती है।

५. पद्य में प्रयोग के कारण - प्रायः पद्यों में शब्दों को कभी-कभी इस प्रकार प्रयोग किया जाता है कि ध्वनियाँ बदली ही जाती हैं। वस्तुतः कवि पद्य में वाक्यों का प्रयोग तो मनमाना करता ही है। कभी-कभी शब्दों को भी छन्दानुसार रखने के लिए बदल देता है। जैसे-

चरन धरत्, शंका करत, स्रवन न चाहत सोर।
सुवरन को ढूँढ़त फिरत कबि व्यभिचारी, चोर ॥

यहाँ इस पद्य में सुवरन के तीन अर्थ होने से यह शब्द सवर्ण, सुवर्ण, स्वर्ण, आदि शब्दों की ध्वनि देता है। कविगण प्रायः भावों के भूखे होते हैं। अतः वे ध्वनि को अपने भावों के अनुरूप बदल देते हैं।

६. बलाघात के कारण - बलाघात के कारण प्रायः ध्वनियाँ बदल जाती हैं। किसी ध्वनि पर जोर देने से वह ध्वनि इतनी महत्वपूर्ण हो जाती है कि शेष ध्वनियाँ या तो कमजोर पड़ जाती हैं या उनका लोह हो जाता है। जैसे 'आभ्यान्तर का भीतर इसलिए हो गया क्योंकि 'भू' ध्वनि पर अधिक बल दिया गया। संस्कृत का 'रात्रि' शब्द पालि में 'रति' होकर हिन्दी में रात हो गया। संस्कृत का 'स्थितः' शब्द पालि में 'ठितो' होकर हिन्दी में 'ठहरा' हो गया। 'अनाज' नाज' रह गया पहले बलाघात के कारण 'लोकनाथ' शब्द के दो अर्थ थे - (१) लोक का नाथ (२) लोक का नाथ जिसका। अब इसका एक ही अर्थ रह गया लोक का नाथ।

७. अनुकरण की अपूर्णता - कभी-कभी भाषा में कुछ ध्वनियाँ ऐसी भी होती हैं जो अनुकरण की अपूर्णता के कारण होती हैं। बहुत से शब्द अनुकरण से ही ज्ञात होते हैं। अतः उनका ठीक प्रकार से अनुकरण न होने से उनके उच्चारण में परिवर्तन हो जाता है, जैसे अंग्रेजी का 'Station' शब्द 'इस्टेशन' 'सटेशन' 'टेशन' आदि रूपों में उच्चरित है, जैसे- संस्कृत में 'ओम् नमः सिद्धम्' की मुण्डी हिन्दी में 'आनामासिधम्' हो गया।

८. विदेशी शब्दों के कारण - राजनीतिक परिवर्तन या संस्कृति के परिवर्तन के कारण व्यापारीकरण होने से प्रायः एक देश की भाषा के शब्द दूसरे देश में पहुँच जाते हैं। जहाँ पर उनका उच्चारण अपने रूप में ही किया जाता है क्योंकि वे शब्द दूसरी भाषा के होने से अपना रूप परिवर्तित कर जाते हैं या उन ध्वनियों मिलती-जुलती ध्वनियों का प्रयोग होने लगता है या निकटतम ध्वनियाँ प्रयोग की जाने लगती हैं। भारत की भाषाओं पर जापानी, यूनानी, तुर्की, पुर्तगाली, अरबी, फारसी, अंग्रेजी, चीनी, आदि अनेक भाषाओं का प्रभाव पड़ा। कभी राजनीतिक वातावरण के कारण तो कभी व्यापार आदि के कारण, परिणामस्वरूप विदेशी ध्वनियाँ भारतीय भाषायें आकर बदल गईं। जैसे- गरीब-गरीब, ट्रेजडी त्रासदी, टेकनीक-तकनीकी इत्यादि।

६. प्रतिध्वनि की प्रवृत्ति - आधुनिक हिन्दी प्रदेशों में कुछ ऐसी प्रवृत्ति भी पायी जाती है जहाँ कुछ प्रतिध्वनियाँ या अनावश्यक ध्वनियाँ उच्चरित होने लगी हैं। जो मूल ध्वनियाँ हैं उनके साथ ही कतपिय अनुरूप ध्वनियाँ उच्चारण की जाती हैं। जैसे खाना वाना, रोना-धोना, पीना वीना, काम-वाम्, चाय-वाय पुस्तक- वुस्तक आदि में खाना, रोना, पीना, काम, चाय, पुस्तक तो मूल ध्वनियाँ थीं परन्तु उनके साथ ही जो अनावश्यक ध्वनियाँ उच्चरित की जाती हैं उन्हें प्रतिध्वनि ही कहा जा सकता है जो प्रायः बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त हैं।।

१०. सहजीकरण - दूसरी भाषाओं से अज्ञात शब्दों को कभी-कभी जानबूझकर भी परिवर्तित कर लिया जाता है। उस शब्द को भाषा की ध्वन्यात्मक प्रकृति के अनुरूप बनाने के लिए या उस भाषा में सहज करने के लिए ऐसा करते हैं। उदाहरण के लिए 'एकेडमी' को हिन्दी में 'अकादमी' या 'टेकनीक' को 'तकनीक' कर लिया गया है। कभी-कभी ऐसा करते समय यह भी ध्यान रखते हैं कि शब्द सहजीकृत होकर अर्थ के स्तर पर भी अपनाने वाली भाषा में भूल या मिलते-जुलते अर्थ में सार्थक हो सके। हिन्दी में 'ट्रेजडी' के लिए 'त्रासदी' या 'कॉमेडी' के लिए 'कामंडी' में यही बात है 'इंटोनेशन' के लिए हिन्दी 'अनुतान' बिलकुल यही न होकर इस सहजीकरण के काफी निकट है। भारतीय भाषाओं के लिए स्वतन्त्रता के बाद स्वीकार किये गये तकनीकी शब्दों में काफी शब्द इस प्रकार के हैं।

एक राष्ट्र, जाति या संघ दूसरे के सम्पर्क में आता है तो विचार-विनिमय के साथ ध्वनि विनिमय भी होता है। एक-दूसरे की विशेष ध्वनियाँ एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। अफ्रीका की बुशमैन परिवार की भाषाओं की क्लिक ध्वनियाँ समीप की अन्य भाषा वर्गों को प्रभावित कर रही हैं। कुछ लोगों का विचार है कि भारोपीय भाषा में 'ट' वर्ग नहीं था। द्रविड़ों के प्रभाव से भारत में आने पर आर्यों के ध्वनि समूह में उसका प्रवेश हो गया। इसी कारण आरम्भिक वैदिक मन्त्रों में उसका प्रयोग बहुत कम है, किन्तु बाद में इसका प्रयोग बहुत अधिक हो गया।

इस प्रकार ध्वनि परिवर्तन के विविध कारण हैं जो एक भाषा के लिए नहीं, विभिन्न भाषाओं के लिए भिन्न-भिन्न हैं। प्रत्येक भाषा का अपना इतिहास है। अतः भाषा में ध्वनियों के परिवर्तन के कारण भी भिन्न-भिन्न हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निम्नलिखित क्रियापदों की सूत्र निर्देशपूर्वक सिद्धिकीजिये।
  2. १. भू धातु
  3. २. पा धातु - (पीना) परस्मैपद
  4. ३. गम् (जाना) परस्मैपद
  5. ४. कृ
  6. (ख) सूत्रों की उदाहरण सहित व्याख्या (भ्वादिगणः)
  7. प्रश्न- निम्नलिखित की रूपसिद्धि प्रक्रिया कीजिये।
  8. प्रश्न- निम्नलिखित प्रयोगों की सूत्रानुसार प्रत्यय सिद्ध कीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित नियम निर्देश पूर्वक तद्धित प्रत्यय लिखिए।
  10. प्रश्न- निम्नलिखित का सूत्र निर्देश पूर्वक प्रत्यय लिखिए।
  11. प्रश्न- भिवदेलिमाः सूत्रनिर्देशपूर्वक सिद्ध कीजिए।
  12. प्रश्न- स्तुत्यः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  13. प्रश्न- साहदेवः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  14. कर्त्ता कारक : प्रथमा विभक्ति - सूत्र व्याख्या एवं सिद्धि
  15. कर्म कारक : द्वितीया विभक्ति
  16. करणः कारकः तृतीया विभक्ति
  17. सम्प्रदान कारकः चतुर्थी विभक्तिः
  18. अपादानकारकः पञ्चमी विभक्ति
  19. सम्बन्धकारकः षष्ठी विभक्ति
  20. अधिकरणकारक : सप्तमी विभक्ति
  21. प्रश्न- समास शब्द का अर्थ एवं इनके भेद बताइए।
  22. प्रश्न- अथ समास और अव्ययीभाव समास की सिद्धि कीजिए।
  23. प्रश्न- द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक) पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- द्वन्द्व समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिकरण कारक कितने प्रकार का होता है?
  26. प्रश्न- बहुव्रीहि समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  27. प्रश्न- "अनेक मन्य पदार्थे" सूत्र की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
  28. प्रश्न- तत्पुरुष समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  29. प्रश्न- केवल समास किसे कहते हैं?
  30. प्रश्न- अव्ययीभाव समास का परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- तत्पुरुष समास की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- कर्मधारय समास लक्षण-उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- द्विगु समास किसे कहते हैं?
  34. प्रश्न- अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं?
  35. प्रश्न- द्वन्द्व समास किसे कहते हैं?
  36. प्रश्न- समास में समस्त पद किसे कहते हैं?
  37. प्रश्न- प्रथमा निर्दिष्टं समास उपर्सजनम् सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  38. प्रश्न- तत्पुरुष समास के कितने भेद हैं?
  39. प्रश्न- अव्ययी भाव समास कितने अर्थों में होता है?
  40. प्रश्न- समुच्चय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- 'अन्वाचय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइये।
  42. प्रश्न- इतरेतर द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- समाहार द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरणपूर्वक समझाइये |
  44. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  45. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  46. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति के प्रत्यक्ष मार्ग से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण विवेचन कीजिए।
  47. प्रश्न- भाषा की परिभाषा देते हुए उसके व्यापक एवं संकुचित रूपों पर विचार प्रकट कीजिए।
  48. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- भाषा-विज्ञान के क्षेत्र का मूल्यांकन कीजिए।
  50. प्रश्न- भाषाओं के आकृतिमूलक वर्गीकरण का आधार क्या है? इस सिद्धान्त के अनुसार भाषाएँ जिन वर्गों में विभक्त की आती हैं उनकी समीक्षा कीजिए।
  51. प्रश्न- आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ कौन-कौन सी हैं? उनकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप मेंउल्लेख कीजिए।
  52. प्रश्न- भारतीय आर्य भाषाओं पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा देते हुए उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- भाषा के आकृतिमूलक वर्गीकरण पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- अयोगात्मक भाषाओं का विवेचन कीजिए।
  56. प्रश्न- भाषा को परिभाषित कीजिए।
  57. प्रश्न- भाषा और बोली में अन्तर बताइए।
  58. प्रश्न- मानव जीवन में भाषा के स्थान का निर्धारण कीजिए।
  59. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा दीजिए।
  60. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- संस्कृत भाषा के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  62. प्रश्न- संस्कृत साहित्य के इतिहास के उद्देश्य व इसकी समकालीन प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिये।
  63. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन की मुख्य दिशाओं और प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए किसी एक का ध्वनि नियम को सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भाषा परिवर्तन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- वैदिक भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- वैदिक संस्कृत पर टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- संस्कृत भाषा के स्वरूप के लोक व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।

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